गाँधी` शब्द सुनते ही ज़ेहन में एक व्यक्ति की तस्वीर उभरती है. सफ़ेद धोती, हाथ में लाठी, तेज चाल और `सत्य,अहिंसा,सद्भाव` के मंत्र पर अटूट विश्वास. लेकिन अब गाँधी एक व्यक्ति नहीं बल्कि विचार के रूप में वैश्विक पटल पर स्थापित हैं. एक ऐसा विचार- जो व्यक्तियों,समुदायों,पंथों और राष्ट्रों के बीच हो रही हिंसा के मध्य, `शांति के समाधान` के रूप में स्थापित है. भारत के सन्दर्भ में देखे तो गाँधी एक धरोहर के रूप में हैं. एक ऐसी उजली धरोहर, जिसने दासता के खिलाफ़ अहिंसक जंग लड़ी. अंत में, विजय पायी. वो विजय अंग्रेज़ों के शासन को देश से उखाड़ फेंक कर, स्वराज को स्थापित करने की थी. लेकिन क्या गाँधी का इरादा सिर्फ़ इतना भर था या इस से भी आगे राष्ट्र में समाहित अनेकों विसंगतियों पर कार्य करना था!आज के दौर में गाँधी की प्रासंगिकता पर प्रश्न खड़े हैं. यहाँ गाँधी नाम के व्यक्ति नहीं बल्कि विचार की बात हो रही है. जिस की अहमियत, वैमनस्यता और कटुता के इस बढ़ते दौर में ओर अधिक हो गयी. गाँधी के विचार भारतीय दर्शन के `वसुधैव कुटुम्बकम्` पर ही स्थापित हैं.गाँधी नाम के व्यक्ति से ज्यादा गाँधी नाम का विचार ज्यादा महत्वपूर्ण है. इस सन्दर्भ में गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने बखूबी बीबीसी हिंदी में कुछ यूँ लिखा है-‘गांधी पूजा एक ख़तरनाक काम’मूर्तियों का प्रतीक संसार सारी दुनिया में अत्यंत बेजान, अर्थहीन और नाहक उकसाने वाला हो गया है. तो गांधी पर हम गांधी वाले रहम खाएँ और मन-मंदिर में भले उन्हें बसाएँ, उनकी मूर्तियां न बनाएँ. हम दृश्य-जगत में उनके मूल्यों की स्थापना का ठोस काम करें.गांधी सामयिक हैं, यह बात नारों-गीतों-मूर्तियों-समारोहों-उत्सवों से नहीं, समस्याओं के निराकरण से साबित करनी होगी.जो गांधी को चाहते और मानते हैं उनके लिए गांधी एक ही रास्ता बताकर गए हैं, अपने भरसक ईमानदारी और तत्परता से गांधी मूल्यों की सिद्धि का काम करें. इससे उनकी जो प्रतिमा बनेगी, वह तोड़े से भी नहीं टूटेगी.साथ ही, जयप्रकाश की चेतावनी याद रखें, “गांधी की पूजा एक ऐसा खतरनाक काम है जिसमें विफलता ही मिलने वाली है.” लेखक विशाल पालीवाल के फेस्बूक वाल से