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Sunday, December 22, 2024
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झारखंड के एक गुमनाम आंदोलनकारी की दर्द भरी दास्तां

फेस्बूक से प्राप्त –

अलग झारखंड राज्य के निर्माण हेतु असंख्य आंदोलनकारियों ने हंसते हुए अपने प्राणों की आहुति दी है। अलग झारखंड राज्य की अलख जगाने वालों तथा शहादत देने वालों में बहुत कम ही आंदोलनकारियों की पहचान हो पाई है और उन्हें इतिहास में तथा इतिहास के पन्नों में स्थान मिल पाया है। असंख्य जीवित तथा शहीद व स्वर्गवासी आंदोलनकारियो की स्मृति आज भी इस उम्मीद में है कि कोई किरण उन तक पहुंचे और उन्हें भी इतिहास के पन्नों में एक अमिट स्थान मिले, एक सम्मान मिले जिसके वे हकदार हैं। कोलकाता से दिल्ली तक मार्ग प्रशस्त करने वाली नेशनल हाईवे झारखंड के कुछ हिस्सों से होकर गुजरती है। इस हाईवे के आसपास बसे क्षेत्रों के आंदोलनकारियों ने हमेशा इस हाइवे के माध्यम से अपने आंदोलन को व्यापक बनाने का कार्य किया है। आंदोलनकारियों ने नेशनल हाईवे को जाम करके तथा गाड़ियों का आवागमन बाधित करके समय-समय पर केंद्र का ध्यान अलग राज्य आंदोलन की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है। इसी क्रम में धनबाद जिले के तोपचांची प्रखंड से नेशनल हाईवे गुजरती है और वहीं एक छोटा सा गांव है मानटांड़। इस गांव के दर्जनों आंदोलनकारी आज भी जीवित हैं और वे राज्य सरकार के माध्यम से पेंशन प्राप्त कर रहे हैं। तोपचांची प्रखंड में कृष्णा प्रसाद महतो नामक एक आंदोलनकारी हुआ करते थें। जिन्होंने तोपचांची के आसपास के क्षेत्रों में झारखंड अलग राज्य आंदोलन का नेतृत्व किया था। कृष्णा प्रसाद महतो झारखंड के पितामह विनोद बिहारी महतो के अति प्रिय और नजदीक थे। विनोद बाबू जब भी पहाड़ी क्षेत्रों का भ्रमण करते थे उनको अपने साथ रखते थे। कृष्णा महतो विनोद बाबू के अत्यंत विश्वसनीय व्यक्ति थे। उनके नेतृत्व में तोपचांची प्रखंड के आसपास के क्षेत्रों में आंदोलन को एक व्यापक स्वरूप मिला था। वे एक निर्भीक, साहसिक और तेज तरार आंदोलनकारी थे। उन्होंने अपने अथक मेहनत, लगन और प्रयास से आसपास के इलाकों में झारखंड अलग राज्य आंदोलन को एक नई ऊर्जा देने का कार्य किया था। उनमें नेतृत्व गुण कूट-कूट के भरा हुआ था। झारखंड मुक्ति मोर्चा के बैनर तले हुए कई बार जेल भी जा चुके थे। केवल सभा रैलियां और कार्यक्रमों में ही नहीं बल्कि जब जब पुलिस की लाठियां चली थी उसका भी नेतृत्व उन्होंने सहजता निर्भीकता के साथ किया था। इसी क्रम में गोमो आर्थिक नाकाबंदी तथा वाटर बोर्ड तोपचांची सड़क जाम; दो अवसरों पर उनके माथे पर लाठियों से प्रहार हुआ; जो उनकी मृत्यु (शहादत) का कारण बनी। उनकी मां झूपड़ी देवी जो आज जीवित है; याद करते हुए कहती है कि उस रात कृष्णा प्रसाद महतो खून से लथपथ माथे पर पट्टी करते हुए घर आए थे। माता-पिता तथा घर वालों ने समझाया कि आज के बाद से तुम्हें आंदोलन में भाग नहीं लेना है। पर वे कहां मानने वाले थे अलग झारखंड राज्य करने का जुनून सर से पांव तक हिलोर मार रहा था। उस समय आंखों में अपने लिए रत्ती भर भी स्वार्थ नहीं दिख रहा था। उनकी आंखों के सामने एक ही नजारा था अलग झारखंड राज्य। उनका जख्म भरा भी नहीं था और वह पुनः आंदोलन को गति देने के लिए सड़क जाम के कार्यक्रम में निकल पड़े। वहां पुनः पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया। उस लाठीचार्ज में कृष्णा प्रसाद महतो को ठीक उसी जगह चोट लगी जहां आर्थिक नाकाबंदी के दौरान लगी थी। जख्म और गहरा और दोगुना हो गया। उन्हें धनबाद व गिरिडीह जिला के कई अस्पतालों में भर्ती कराया गया; जहां उनका इलाज चला। परंतु अंततः वे गई जिंदगी की जंग हार गए। अक्टूबर 14 को आंखों में अधूरा सपना अलग झारखंड राज्य का लिए संसार को अलविदा कह गए। वह पल अत्यंत पीड़ादायक था क्योंकि उनकी पत्नी के गर्भ में उनका 6 माह का शिशु था। जिसका जन्म उनकी शहादत के 3 महीने बाद हुआ। उनकी पत्नी को आज झारखंड राज्य सरकार द्वारा ₹3000 का आश्रित पेंशन प्राप्त होता है। परिवार में पत्नी के अलावा दो पुत्र, एक वृद्ध माता और एक जन्मांध भाई है।शहादत दिवस पर उस क्रांतिवीर को कोटि-कोटि नमन।🙏🙏🙏😢😢😢😢😢ऊपर लिखी कहानी मेरे पिताजी की है। मुझे कुछ स्मरण नहीं है, मां बस इतना बताती है कि घर के सभी लोग पिता की मृत्यु पर रो रहे थें और मैं पावरोटी लेने के लिए रो रहा था।

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