बिना सरकारी बाबू को घुस दिए चाय कैसे बेच सकती थी ग्रेजुएट चायवाली? कुछ अलग और नया करना आसान नहीं होता। उसके लिए हिम्मत चाहिए। बिहार में अगर वो हिम्मत कोई दिखाए तो सिस्टम और समाज मदद तो नहीं करती मगर वो अगर थोड़ा सफल हो जाए और अपनी पहचान बनाने लगे तो उसका टांग खींचने जरूर आ जाते हैं। ग्रेजुएट चायवाली प्रियंका गुप्ता उसका एक उदाहरण है। प्रियंका की गलती बस इतनी है कि वो लड़की होकर चाय बेचने निकली थी। चाय बेचकर ही वो “शर्मा जी” यूपीएससी टॉपर लड़के से ज्यादा फेमस हो रही थी। प्रियंका अगर फेमस नहीं होती तो नगर निगम को उसका स्टॉल नहीं दिखता। अपने अनोखे प्रयास से प्रियंका ने ग्रेजुएट चायवाली को एक ब्रांड बना दिया था। उसके फ्रेंचाइज खुल रहे थे। कायदे से सरकार और सिस्टम को उसको आगे बढ़ने में मदद करना चाहिए था। अगर उसने कोई नियम का पालन नहीं किया तो उसे गाईड करना चाहिए था। ऐसे ही कोई स्टार्टअप बड़ा बनता है। लेकिन यहां तो कोई कुछ शुरू करे उससे पहले उससे परमिशन, कमीशन, प्रक्रिया, लाइसेंस, आदि – आदि का बुलडोजर चलाकर उसका हौसला तोड़ दिया जाता है।