रांची : गिरिडीह: मरांग बुरू (पारसनाथ) पर झारखंड के आदिवासी मूलवासी समाज का सदियों से जन्मसिद्ध अधिकार है, इसे दुनिया की कोई ताकत चाहे कोई भी सरकार रहे, उन्हें अधिकार से वंचित नहीं कर सकती. अगर ऐसा हुआ तो केंद्र व राज्य सरकारों को इसके गंभीर परिणाम भुगतनी पड़ सकती है. उपरोक्त बातें झारखंड बचाओ मोर्चा के केंद्रीय संयोजक सह आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष विजय शंकर नायक ने कही. गिरिडीह में मंगलवार को मरांग बुरू बचाओ अभियान के तहत हुए महाजुटान कार्यक्रम में देश के विभिन्न एवं राज्य के विभिन्न जिलों से लाखों की संख्या में उपस्थित आदिवासी-मूलवासी के महाजुटान कार्यक्रम की सफलता पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे।
जैन धर्मावलंबी आदिवासी संस्कृति पर हमला करना बंद करें
श्री नायक ने कहा कि मरांग बुरु बचाओ अभियान आंदोलन के अब दूसरे चरण में 30 जनवरी को भगवान बिरसा मुंडा का जन्म स्थल खूंटी के उलीहातू में एक दिवसीय उपवास का कार्यक्रम किया जाएगा. इसके बाद भी सरकार ने अगर ध्यान नहीं दिया तो फिर भोगनाडीह में 2 फरवरी को सिद्धू कानू के जन्म स्थल पर विशाल उपवास कार्यक्रम केंद्रीय संयोजक विधायक लोबिन हेंब्रम के नेतृत्व में किया जाएगा. इसके बाद भी अगर सरकार की नींद नहीं टूटी तो फिर चरणबद्ध आंदोलन शुरू किया जाएगा. श्री नायक ने कहा कि जैन धर्मावलंबी झारखंड के आदिवासी मूलवासी के रीति-रिवाज उनकी संस्कृति पर हमला करना बंद करें और भगवान महावीर के संदेश (जियो और जीने दो) की नीति पर काम करने का काम करें. उन्होंने कहा कि यह बहुत अजीब बात है कि संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची के अनुसार आदिवासी-मूलवासी के स्वामित्व वाली जमीन को गैर-आदिवासी नहीं खरीद सकते। लेकिन यहां धड़ल्ले से जैन संप्रदाय के लोग जमीन खरीद रहे हैं तथा ऊंचे-ऊंचे आश्रम बना रहे हैं।