ग़ज़ल
सभ्यता की वो निशानी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाक़ी है है अभी तक गाँव में
शहर में फैले हुए हैं काँटे नफ़रत के मगर
प्रेम की बगिया महकती है अभी तक गाँव में
चैट और ईमेल पर होती है शहरी गुफ़्तगू
ख़त किताबत, चिठी पत्री है अभी तक गाँव में
दौड़ अंधी शहर में पेड़ों को हर दिन काटती
पर , पेड़ों की पूजा होती है अभी तक गाँव में
एक पगली सी नदी बारिश में आती थी उफ़न
वैसे ही सबको डराती है अभी तक गाँव में
शहर में चाइनीज़ थाई नौजवानों की पसंद
खुश्बू पकवानों की आती है अभी तक गाँव में
दिन के चढ़ने तक सोते हैं मग़रिबी तहज़ीब में
तड़के- तड़के ही प्रभाती है अभी तक गाँव में
लेखिका –
नाम- रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा)
बोकारो थर्मल(झारखंड)
शिक्षा- बी. सी. ए, डबल एम.ए, बीएड , पी.एच डी.
साहित्यिक कृतियाँ – 1कविता संग्रह ” स्वप्न मरते नहीं 1ग़ज़ल संग्रह”चाँदनी रात , 7 साझा ग़ज़ल संग्रह ।
कई साहित्यिक सम्मान प्राप्त ।