कमलनयन
गृहस्थ जीवन में असहनीय संघर्षों को नियति मानकर सादगीपूर्ण जीवन के सहारे सार्वजनिक जीवन गुजारनेवाली झारखंड की गर्वनर रही द्रौपदी मुर्मू को एनडीए ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में चयन किया है तबसे प्रिंट मीडिया, टीवी चैनलों में भावी राष्ट्रपति के अबतक के जीवन पर आधारित खबरें लगातार आ रही हैं, क्योंकि देश की आजादी की 75वीं वर्षगांठ को देश अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है और आजाद भारत में एक साधारण परिवार में जन्मी भावी राष्ट्रपति जनजातीय समाज से आती है।
गांव की बेटी अब राष्ट्रपति बनेंगी…!
यह कहना अनुचित नहीं होगा कि यह समाज आज भी देश के अन्य समुदायो की अपेक्षा हर स्तर पर पिछड़ा हुआ है, राजग ने इस जनजातीय समाज की प्रतिभाशाली बेटी को विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की प्रथम नागरिक होने का उपहार देकर पूरे समाज को गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान किया है. हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय लोकतंत्र की ही यह विशेषता है.
बिना वेतन के शिक्षक के तौर पर काम किया
आदिवासी समाज से आनेवाली वो बेटी, जो एक बड़ी उम्र तक घर के बाहर शौच जाने के लिए अभिशप्त थी. अब वो भारत की ‘राष्ट्रपति’ बनने जा रही हैं। वो लड़की, जो पढ़ना सिर्फ इसलिए चाहती थी कि परिवार के लिए रोटी कमा सके.. वो महिला, जो बिना वेतन के शिक्षक के तौर पर काम कर रही थी… वो महिला, जिसे जब ये लगा कि पढ़ने-लिखने के बाद आदिवासी महिलाएं उससे थोड़ा दूर हो गई हैं तो वो खुद सबके घर जा कर ‘खाने को दे’ कह कर बैठने लगीं..जिसने अपने पति और दो बेटों की मौत के दर्द को झेला और आखिरी बेटे के मौत के बाद तो ऐसे डिप्रेशन में गईं कि लोग कहने लगे कि अब ये नहीं बच पाएंगी.
राजनीति में आने के बाद सम्मान मिला
जिस गाँव में कहा जाता था राजनीति बहुत खराब चीज है और महिलाएं को तो इससे बहुत दूर रहना चाहिए, वो महिला… जिन्होंने अपना पहला काउंसिल का चुनाव जीतने के बाद जीत का इतना ईमानदार कारण बताया कि ‘वो क्लास में अपना सब्जेक्ट ऐसा पढ़ाती थीं कि बच्चों को उस सब्जेक्ट में किसी दूसरे से ट्यूशन लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी और उनके 70 नम्बर तक आते थे. इसीलिए क्षेत्र के सारे लोग और सभी अभिभावक उन्हें बहुत लगाव रखते थे’ वो महिला, जो अपनी बातों में मासूमियत को जिन्दा रखते हुए अपनी सबसे बड़ी सफलता इस बात को माना कि ‘राजनीति में आने के बाद मुझे वो औरतें भी पहचानने लगी जो पहले नहीं पहचानती थी’..
अपनी आंखें दान करने की घोषणा की
वो महिला, जो 2009 में चुनाव हारने के बाद फिर से गाँव में जा कर रहने लगी और जब वापस लौटी तो अपनी आँखें दान करने की घोषणा की. वो महिला, जो ये मानती हैं कि ‘Life is not bed of roses. जीवन की कठिनाइयों के बीच ही रहेगा, हमें ही आगे बढ़ना होगा। कोई push करके कभी हमें आगे नहीं बढ़ा पायेगा’.. कई दशकों से ठीक कपड़ों और खाने तक से दूर रहने वाले समुदाय को देश के सबसे बड़े ‘भवन’ तक पहुँचा कर भारत ने विश्व को फिर से दिखा दिया है कि यहाँ रंग, जाति, भाषा, वेष, धर्म, संप्रदाय का कोई भेद नहीं चलता। जिनके प्रयासों से उनके गाँव से जुड़े अधिकतर गाँवों में आज लड़कियों के स्कूल जाने का प्रतिशत लड़कों से ज्यादा हो गया है, ऐसी है द्रौपदी मुर्मू भारत की राष्ट्रपति बनने जा रही है। दरअसल, भारत की पहली आदिवासी परिवार से आनेवाली भावी महिला राष्ट्रपति बनने से आदिवासी समाज को सम्मान मिला है. जय झारखंड...जोहार..!!