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Monday, December 23, 2024
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कोल्हान में खतियान बन पाएगा खेवनहार? कोड़ा दंपती के विरोध के बाद हेमंत सरकार पसोपेश में, क्या अब सदन में होगा फैसला…!

नारायण विश्वकर्मा
झारखंड में हेमंत सरकार द्वारा बगैर सर्वदलीय बैठक बुलाए एक झटके में 1932 के खतियान को कैबिनेट से पास करा लेने के बाद अब इसके साइड इफेक्ट्स भी सामने आने लगे हैं. आदिवासी संगठनों के अलावा आजसू ने भी हेमंत सरकार के इस निर्णय पर अपनी मुहर लगा दी है, पर सबकी रायशुमारी के बिना जल्दबाजी में उठाया गया यह कदम झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर चुनाव लड़कर जीतनेवाले विधायकों पर भारी पड़ सकता है. सभी विधायकों को अपने वोट बैंक की चिंता है. हालांकि झामुमो के कई विधायक अभी चुप हैं, क्योंकि विधानसभा चुनाव में अभी देरी है, पर 2024 के लोकसभा चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं है. कोल्हान के करीब 50 लाख की आबादी को लेकर कोड़ा दंपती 1964 के सर्वे को लागू करने की बात कहकर हेमंत सोरेन को सकते में डाल दिया है. वहीं कोल्हान प्रमंडल की दो लोकसभा सीटों जमशेदपुर और चाईबासा के सांसदों के लिए खतियान खेवनहार बन पाएगा, इसमें संदेह है.
कोड़ा दंपती के विरोध पर भाजपा सांसद चुप क्यों?

क्षेत्रीय आधार पर झारखंड के कई विधायकों को मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है. कोल्हान में तो कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने हेमंत सोरेन के निर्णय का सख्त विरोध दर्ज करा दिया है. वहीं कोल्हान में झामुमो के सभी विधायक अभी चुप्पी साधे हुए हैं. सिर्फ पूर्वी जमशेदपुर के निर्दलीय विधायक सरयू राय ने कई तकनीकी पेंच को लेकर ट्विटर वार चला रहे हैं. मीडिया के जरिए भी वह हेमंत सरकार से सवाल कर रहे हैं. इसका जवाब देना सरकार के लिए मुश्किल साबित हो रहा है. प. जमशेदपुर के कांग्रेस विधायक बन्ना गुप्ता अभी मन मार कर चुप हैं और विरोध में बोलने के परहेज कर रहे हैं. वहीं जगरनाथपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक सोनाराम सिंकू कोड़ा दंपती के विरोध में खड़े रहेंगे. जमशेदपुर के शहरी वोटरों के बल पर चुनाव जीतकर आनेवाले जमशेदपुर के भाजपा सांसद विद्युत वरण महतो की स्थिति सांप-छुंछदर वाली नजर आ रही है. उन्हें शायद उम्मीद है कि देर-सबेर यह मामला खटाई में पड़ जाएगा.

कोल्हान में कोड़ा दंपती के विरोध के मायने?
कोड़ा दंपती के विरोध पर झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना है कि यह टेक्निकल मामला है और कोल्हान या उन क्षेत्रों में जहां सर्वे सेटलमेंट बाद में हुआ है, वहां के लिए अलग प्रावधान किया जा सकता है. वहीं संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम ने भी यह कह दिया है कि सदन में इस संबंध में विधेयक आने के बाद विधायकों के लिए संशोधन का ऑप्शन खुला हुआ है. उनके प्रस्ताव पर गौर किया जाएगा. पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के 1932 के समर्थन पर स्पष्ट कहा है कि उन्हें बोकारो से चुनाव लड़ना है, पर मेरी निगाह में मेरे लिए पूरा कोल्हान का मामला है और मैं किसी कीमत पर कोल्हान के लोगों के साथ छल नहीं कर सकता. वैसे हेमंत सोरेन को इसका यकीन नहीं था कि कोल्हान क्षेत्र से कोड़ा दंपती इस कदर विरोध पर उतारू हो जाएंगे. लेकिन कोड़ा दंपती कोल्हान के बड़े हितैषी बनकर जरूर उभरे हैं. बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में एकमात्र चाईबासा सीट ही कांग्रेस बचा सकी थी. वहीं विधानसभा चुनाव में कोल्हान प्रमंडल से भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था. कोल्हान की 14 सीटों में भाजपा एक भी विधानसभा सीट नहीं जीत पाई थी. कोड़ा दंपती के बलबूते ही जगरनाथपुर विधानसभा सीट भी कांग्रेस की झोली में चली गई. शेष 12 सीटों पर झामुमो ने अपना परचम लहराया था.

कोल्हान में झामुमो को मिल सकती है चुनौती
सच कहा जाए तो कोल्हान क्षेत्र में झामुमो का कब्जा है. यहां झामुमो के 11 और कांग्रेस के दो और एक निर्दलीय विधायक अपनी-अपनी सीट जीत कर भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया है. जुगसलाई से मंगल कालिंदी, चाईबासा से दीपक बिरुआ, मंझगांव से निरल पूर्ति, मनोहरपुर से जोबा मांझी, चक्रधरपुर से सुखराम, सरायकेला से चंपई सोरेन, खरसावां से दशरथ गागराई, ईचागढ़ से सविता महतो, पोटका से संजीव सरदार, बहरागोड़ा से समीर मोहंती और घाटशिला से रामदास सोरेन सभी झामुमो के विधायक हैं. इसके अलावा जमशेदपुर पूर्वी से सरयू राय (निर्दलीय), जमशेदपुर प. से बन्ना गुप्ता (कांग्रेस), जगरनाथपुर से सोना राम सिंकू (कांग्रेस) शामिल हैं. बहरहाल कोल्हान में 1932 का खतियान कितना असरकारक होगा, ये अभी कहना मुश्किल है, पर इतना तय है कि यदि स्थानीय नीति जस की तस लागू कर दी गई तो, कोल्हानवासियों की बड़ी आबादी प्रभावित हो सकती है. कोड़ी दंपती कोल्हान में सर्वे सेटलमेंट 1964-65 को आधार बनाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने में अगर कामयाब होते हैं तो, फिर 1932 के खतियान का क्या मतलब रह जाएगा, ये बड़ा सवाल है. इसके अलावा झारखंड के अन्य जिलों में भी सर्वे को आधार बनाया गया तो, सरकार की फजीहत हो सकती है. अब देखना है कि विधानसभा में किस तरह का संशोधन होता है, इसपर अब सबकी निगाहें टिकी हुई हैं.

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