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Monday, December 23, 2024
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आदिवासी अवेयरनेस सोसायटी (आस) ने जनजातीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया

नई दिल्ली : आदिवासी अवेयरनेस सोसायटी (आस) द्वारा वाईएमसीए परिसर, नई दिल्ली में शनिवार को एक दिवसीय जनजातीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह चर्चा आदिवासी जागरूकता: चेतना, एकता और कार्य पर केंद्रित थी। इसमें आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता पर बल दिया गया।

जनजाति आदिवासी भाषा से जुड़े रहना जरूरी: डॉ वर्जिनियस खाखा

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता डॉ वर्जिनियस खाखा (समाजशास्त्री, लेखक व पूर्व निदेशक- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस, गुवाहाटी) ने अपने संबोधन में कहा कि आज सभी आदिवासियों को अपनी जाति नहीं, बल्कि अपनी आदिवासी भाषा से जुड़ने की जरुरत है, तभी हम अपने समुदाय को बचा सकते हैं और हमारी पहचान भी बनी रहेगी। जैसे देश के विभिन्न प्रदेशों के लोग भाषा के आधार पर ही जुड़े हुए हैं, बंगाली, उड़िया, पंजाबी, तमिल, तेलगु व अन्य लोग अपनी भाषा से ही जुड़े हैं, तभी वो बंगाली, उड़िया, पंजाबी, तमिल, तेलगु व अन्य कहलाये जाते हैं। इसलिये हमें भी अपनी जनजाति आदिवासी भाषा से जुड़े रहना चाहिये। हमें अपने को आदिवासी होने पर गर्व होना चाहिये न कि हमें अपने आपको आदिवासी कहने पर शर्म। उन्होंने कहा कि आदिवासी को धर्म व जाति से नहीं जोड़ना चाहिए। हमें आदिवासी समुदाय के सभी जातियों करिया, मुंडा, संथाल, मीणा, क्रिचिश्यन व अन्य किसी भी जाति के हो हम सभी आदिवासी समुदाय से जुड़े लोग हैं।

आदिवासी देश का अहम हिस्सा हैं: बंधु तिर्की

झारखंड के पूर्व मंत्री व पूर्व विधायक बंधु तिर्की ने कहा कि आदिवासी इस देश का एक अहम हिस्सा है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि भाषा के बिना आदिवासी समुदाय का कोई अस्तित्व नहीं है, इसलिये हमें अपनी भाषा से जुड़े रहना चाहिये। जुबान, जंगल व जमीन ही आदिवासी की पहचान है। पूरे झारखंड राज्य में 32 तरह के आदिवासी जाति होने के बावजूद हम सभी आदिवासी समुदाय से जुड़े लोग हैं। हमें सिर्फ आदिवासी की पहचान बनाने की ही जरूरत है। आज अपने समुदाय से देश की राजधानी दिल्ली में भी एक अच्छे सांसद की जरूरत है, ताकि आदिवासी समुदाय की बात भी उठाया जा सके। उन्होंने कहा कि झारखंड राज्य की स्थापना हम आदिवासी लोगों के लिये ही हुई और आज झारखंड को बचाने की जरूरत है, वहां भी हमारे बीच धर्म व जातियों में बांटने की कोशिश हो रही है। हमें एक होकर रहना है और अपने समुदाय को बचाने व अपने अधिकारों को जानने की जरूरत है। हमें इस तरह की चर्चा व गोष्ठी समय-समय पर करते रहना चाहिए, ताकि हमारे आदिवासी समुदाय से जुड़े लोगों को जागरूक किया जा सके।

आदिवासी समुदायों के बुद्धिजीवियों ने सक्रिय भूमका निभाई

कार्यक्रम में पूरी दिल्ली और एनसीआर के विभिन्न आदिवासी समुदायों के बुद्धिजीवियों ने कार्यक्रम में सक्रिय भाग लिया। सरकारी, गैर-सरकारी और निजी संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया और अपने बहुमूल्य सुझाव दिए। इस संगोष्ठी का उद्देश्य भारत सरकार तक आदिवासी समुदाय की बात पहुचाना और आदिवासी समुदायों के कल्याण की ओर उनका ध्यान आकर्षित करना है, ताकि भविष्य में उन्हें वह लाभ एवं सम्मान मिले जिसके वे हकदार हैं।

चर्चा में ये लोग थे शामिल

डॉ वर्जिनियस खाखा (पूर्व निदेशक- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस, गुवाहाटी), सुरेंद्र कुमार सुमन (सचिव झारखंड भवन, नई दिल्ली), श्रीमती प्रवीण होरो सिंह (अतिरिक्त महानिदेशक, योजना और सांख्यिकी मंत्रालय), बंधु तिर्की (पूर्व मंत्री व विधायक, मांडर, झारखंड), डॉ (श्रीमती) गोमती बोदरा (जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली), आलोक मिच्यारी (जनजातीय नेता व सदस्य-निदेशक मंडल-नई दिल्ली वाईएमसीए), सुश्री सोमोदिनी टुडू लकड़ा, राजकुमार नागवंशी (झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता), बेलस तिर्की (झारखंड के युवा नेता), मशाल सोशल वेलफेयर सोसाइटी के मोहन बड़ाइक और गंगाराम गगराई (दिल्ली के आदिवासी नेता) आदि सभी आदिवासी समुदाय के लोग एक साथ आए और इस सम्मेलन के दौरान कई प्रासंगिक विषयों पर चर्चा की।

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