पटना। कोरोना काल में विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला लगने या नहीं लगने को लेकर संशय बरकरार था, लेकिन नयी सरकार के भूमि सुधार एवं राजस्व मंत्री रामसूरत राय ने मीडिया से बातचीत में साफ कर दिया है कि इस वर्ष कोरोना को लेकर श्रावणी मेला एवं गया का पितृपक्ष मेला नहीं लगा। ऐसे में हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला भी नहीं लगेगा। उन्होंने कहा कि इसकी भरपाई अगले वर्ष काफी धूमधाम के साथ इस मेले का आयोजन कर की जाएगी।
विश्व प्रसिद्ध है हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला-
गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा के साथ-साथ कई धार्मिक व पौराणिक मान्यताएं भी हैं। लोगों की आस्था के केंद्र में बाबा हरिहरनाथ का मंदिर है। यहां भगवान विष्णु और भगवान शिव का मंदिर होने के कारण इस क्षेत्र का नाम हरिहर पड़ा। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यहीं कोनहारा घाट के गंडक नदी में एक गज (हाथी) को एक ग्राह (मगरमच्छ) ने पकड़ लिया था। दोनों में काफी देर तक युद्ध होता रहा। इस दौरान गज को ग्राह ने बुरी तरह जकड़ लिया था। तब गज ने भगवान विष्णु का स्मरण किया था। तब भगवान विष्णु ने प्रकट होकर स्वयं गज की रक्षा की थी।
एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला-
हरिहर क्षेत्र कई संप्रदायों के मतावलंबियों के आस्था का केंद्र भी है। सबसे बड़े पशु मेला होने का गौरवशाली इतिहास भी है। मेले का गौरवशाली इतिहास, पौराणिकता, समृद्ध लोक संस्कृति की झलक व धार्मिक पहलू जुड़कर यह अनोखा बन जाता है। आस्था, लोकसंस्कृति व आधुनिकता के विभिन्न रंगों को अपने दामन में समेटे सोनपुर मेले का आरंभ कब हुआ, यह कहना मुश्किल है।
बदलते बिहार की दिखती है झांकी-
कभी यहां मौर्यकाल से लेकर अंग्रेज के शासन काल तक राजा-महाराजा हाथी-घोड़े खरीदने आया करते थे। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना के साथ पवित्र गंगा और गंडक नदी में डुबकी लगाने आते हैं। आस्था, लोकसंस्कृति व आधुनिकता के रंग में सराबोर सोनपुर मेले में बदलते बिहार की झलक भी देखने को मिलती रही है।
ग्रामीण परिवेश की संस्कृति की झलक-
सोनपुर मेला में ग्रामश्री मंडप, अपराध अनुसंधान, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, आर्ट एंड क्राफ्ट आदि सरकारी विभागों की प्रदर्शनी में बदलते बिहार की झलक दिखती है, वहीं सरकार की विकास योजनाओं की भी जानकारी मिलती है। ग्रामश्री मंडप व क्राफ्ट बाजार में तेजी से बदलते व स्वावलंबन की ओर बढ़ती ग्रामीण परिवेश की संस्कृति दिखती रही है।