नेताजी सुभाष चंद्र बोस यानी एक ऐसा नाम जिसे लेते ही खून में उबाल आ जाए। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, ‘वंदेमातरम’ और ‘दिल्ली चलो’ का नारा जुबान पर आ जाए। भारत माता के इस महान सपूत के सम्मान में उनका उद्घोष ‘जय हिंद’ मुंह से फूट पड़े। इतना सब कुछ आज से ठीक 81 साल पहले डालटनगंज में हुआ था। 10 फरवरी दिन शनिवार को नेताजी शहर में थे और उनकी सभा यहां के ऐतिहासिक शिवाजी मैदान में हुई थी। पहले, 1940 में नेताजी के यहां आने की बात तो होती थी पर वह तारीख क्या थी, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं थी। इस साल 18 से 20 मार्च तक रामगढ़ में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था। इसकी वजह से लोग यह अनुमान लगाते थे कि इसी महीने में नेताजी का आगमन डालटनगंज में हुआ होगा।इस सभा में अमिय कुमार घोष, सुकोमल दत्ता सरीखे नेता मौजूद थे तो गंगा प्रसाद जैसे किशोर भी थे। गंगा बाबू पर तो नेताजी के भाषण का ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने स्कूल खुलने वाले दिन गिरिवर स्कूल (जहां वे पढ़ते थे) में प्रार्थना सभा में पहले वंदेमातरम का गान करने लगे।अब यह सवाल उठना मुनासिब है कि 10 फरवरी का दिन सही कैसे है। डालटनगंज में स्वतंत्रता सेनानियों का एक परिवार है। यदुवंश सहाय, उनके भाई उमेश्वरी चरण ‘लल्लू बाबू’ और उनके पुत्र कृष्णनंदन सहाय ‘बच्चन बाबू’ 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल गए थे। लल्लू बाबू को रोज डायरी लिखने की आदत थी। इसी डायरी में उल्लेख है कि इस दिन सुभाष बाबू डालटनगंज में थे। पलामू के स्वतंत्रता सेनानियों पर लिखने के दौरान मुझे कई ऐतिहासिक दस्तावेज मिले। इन्हीं में से हैं लल्लू बाबू के डायरी के कई पन्ने। इन पन्नों पर हैं उनकी बेबाक टिप्पणियां। उन पर नेताजी का प्रभाव तो पड़ा पर बहुत नहीं। इसकी एक झलक देखिए-10 फरवरी 1940डालटनगंजआज अनवर भाई के साथ यहां 2.30 बजे पहुंचा और जलपान आदि कर 7 बजे तक सुभाष बाबू के सभा के मशगूल रहा। उनके भाषण का बहुत प्रभाव मुझ पर नहीं पड़ सका। ये कांग्रेस को मजबूत नहीं कर रहे हैं-ऐसा मुझे लगता है। 10 बजे सो गया।नेताजी का रात्रि विश्राम अमिय कुमार घोष के घर पर हुआ था। यह वही घर है जहां आज की तारीख में प्रकाश चंद जैन सेवा सदन है। इस मकान के पहले तल्ले पर नेताजी के सोने का इंतजाम था। डालटनगंज आने से पहले नेताजी जपला भी गए थे। इस बात की पुष्टि वहां के वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रेश्वर प्रसाद भी करते हैं।अब थोड़ी बात अपनी और अपने परिवार पर नेताजी के प्रभाव की। एक बार मैं पापा के साथ अपने गांव पनेरी बांध में था। यहां आऩे के बाद फरबी बांध तालाब में नहाना तो रोज का नियम था। पापा के साथ हम दोनों भाई भी यहां नहाने पहुंच जाते थे। एक दिन हम लोग यहां पहुंचे तो पापा के किशुन मामा वहां पहले से मौजूद थे। उन्होंने पापा को ‘तारकेंद्र’ नाम से पुकारा। यह नाम हम लोगों के लिए नया था। दरअसल, पिता के नाम के पहले अक्षर से पुत्र का नाम रखने की एक परंपरा है। उसी परंपरा के तहत बाबा के नाम तपेश्वर के पहले अक्षर से पापा का नाम तारकेंद्र रखा गया था। देश में स्वतंत्रता आंदोलन की धूम थी और लोग नेताजी के दीवाने थे। ऐसे में मेरे बाबा कैसे अछूते रहते। उन्होंने अपने बेटे का नाम अपने आदर्श सुभाष चंद्र बोस के नाम पर रख दिया।जब बाबा ने पापा के नाम बदलने की कहानी बताई तो हम दोनों भाइयों का बालमन कुछ और जानने को मचलने लगा। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में नेताजी, गांधीजी, नेहरूजी, वीर सावरकर सरीखे नेताओं से जुड़ी कहानियां तो बताईं ही इनसे जुड़ी किताबें भी खरीद कर दी।नेताजी की जोशपूर्ण बातें मेरे बाल मन में बहुत गहराई तक बैठ गईं। जब हम दोनों भाइयो ने बाबा से नेताजी के बारे में कुछ और जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि कुछ ऐसी बातें तुम लोगों के सामने घटित होंगी कि पूरा परिवार नेताजी को याद रखेगा। सच में दो घटनाएं ऐसी हुईं कि हमलोग नेताजी को बरबस याद कर लेते हैं। पहली घटना थी माई (दादी) का निधन। माई ने जिस दिन अपना नश्वर शरीर त्यागा था तो वह तारीख थी 23 जनवरी यानी नेताजी की जयंती। अब भला इस दिन को मेरा परिवार कैसे भूल सकता है।अभी नेताजी से एक और कड़ी जुड़ने वाली थी। जब मेरा पहला पुत्र गर्भ में था तो उसकी मां का इलाज प्रकाश चंद जैन सेवा सदन में डॉक्टर मीरा झा करतीं थी। इसी मकान में नेताजी रूके थे। बेटे का जन्म भी इसी अस्पताल में हुआ। वह और उसकी मां उसी कमरे में करीब दस दिन तक रहे जिसमें नेताजी ठहरे थे। यह रोमांचक और गर्व करने वाला पल था। दूसरे बेटे का जन्म भी उसी अस्पताल में हुआ। जहां सुभाष चंद्र बोस सरीखे महान देशभक्त ठहरे हों वहीं सुभाष चंद्र मिश्रा के पौत्र उत्कर्ष और शिखर का जन्म होना रागिनी और सुमन के लिए हर्ष से भरा रहा है।आज नेताजी के अपने शहर में आने का दिन है। जिस जगह पर नेताजी की प्रतिमा लगी है, संभव है वह वहां से गुजरे भी हों। जिस जगह वह ठहरे थे और जहां उनकी सभा हुई थी वह स्थान आज के सुभाष चौक (पहले सद्दीक मंजिल चौक) के पास ही है।नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पलामूवासियों की ओर से नमन। जय हिंद, नेताजी की जय।