पटना – दुख दुख नहीं जब तक उसकी फ़ोटो नहीं। एक जर्जर प्रदेश में बचा क्या है? लाखों नौजवानों की नसों में घटिया कॉलेज आक्सफोर्ड बनकर दौड़ रहे हैं। परीक्षा समय पर नहीं होती तो क्या नौजवान छाती पीट लेंगे ? जब वे अपनी बर्बादी से संतुष्ट हो सकते हैं तो उम्मीद ही क्यों कि पुल का अप्रोच रोड ढह जाएगा तो बदलने निकलेंगे? जहां की जवानी तीन साल का बाएँ पाँच साल में करती हो उसकी जवानी से उम्मीद ही क्यों? कोरोना के समय में अस्पतालों का हाल सबने देख लिया। जब मरने और आर्थिक रूप से कंगाल होने पर लोग नहीं जागे तो एक पुल से उम्मीद क्यों ? कोरोना से लड़ाई पाँच किलो गेहूं से लड़ रहे हैं। जो काम ऐसे भी होना था उस काम को कोरोना से लड़ाई बता रहे हैं। पूरा बिहार टूटा पड़ा है। एक पुल के टूटने पर हंगामा क्यों ? बिहार की जनता को जाति और धर्म की याद दिला दीजिए वैसे भी व्हाट्स एप ग्रुप बन ही गया है चुनाव के लिए। मुस्लिम विरोधी मीम आते ही होंगे। रोज़ बी पी एस सी परीक्षा के छात्र मैसेज करते हैं, कालेजों को करते हैं , छात्रों के पास किराए का पैसा नहीं है मकान मालिक गाली दे रहा है मगर सरकार को कोई फ़िक्र नहीं ? सरकारों का एक ही काम है। किसी को फँसा कर दो चार साल जेल में सड़ा दो। बोलना बंद हो जाएगा। वो जवानी जवानी नहीं जिसकी कोई कहानी नहीं। न्यूज़ सोर्स न्यूज़ माक्रान्त देवघर