नारायण विश्वकर्मा
अग्निपथ योजना के विरोध में हिंसा थमने के बाद अब देश भर में सांसदों-विधायकों की पेंशन बंद कराने की मांग को अहिंसक धार (सत्याग्रह) देने की कोशिश हो रही है. देश के युवाओं के अलावा कांग्रेसियों ने भी अग्निवीर स्कीम में पेंशन को अहम मुद्दा बनाए हुए हैं. कहा जा रहा है कि अगर सांसदों को पेंशन दी जा सकती है तो, अग्निवीरों को पेंशन क्यों नहीं? जबकि माननीयों को कार्यकाल पूरा नहीं करने पर भी पेंशन मिलती है. देश में पहली बार माननीयों को मिलनेवाली पेंशन पर अब बहस छिड़ गई है. हालांकि इस मामले में माननीय क्रांतिवीर स्कीम के फायदे गिनाने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं. पेंशन स्कीम के विरोध में कुछ भी कहने से बच रहे हैं.
पीएम पेंशन बंद करने के लिए अध्यादेश लाएं…!
जब 18 साल पूर्व वाजपेयी सरकार ने केंद्रीय नौकरियों में पेंशन बंदी की, तो कहीं भी आंदोलन की सुगबुगाहट तक नहीं हुई थी. पर लोगों के लिए यह फील गुड साबित नहीं हुआ, न इंडिया साइनिंग हुआ. पेंशन स्कीम इस सरकार के लिए भी बोझ के समान है. गाहे-बगाहे यह भी कहा गया कि पेंशन के बोझ के कारण देश की सुरक्षा के लिए हथियार खरीदना मुश्किल हो रहा है. अगर ऐसा है तो प्रधानमंत्री अध्यादेश लाकर पेंशन पर रोक लगा दें. पीएम तो एक झटके में कई अध्यादेश लाकर लोगों को चकित भी किया है, तो इसपर अध्यादेश क्यों नहीँ आ सकता? आज की तारीख में प्रधानमंत्री अकेले निर्णय लेने में सक्षम हैं.
सिर्फ वरुण गांधी व डॉ अजय सामने आए
इस मांग के बीच सबसे पहले भाजपा सांसद वरुण गांधी की ओर से आवाज उठी है. वे लगातार ‘अग्निपथ योजना’ पर सवाल उठा रहे हैं. उन्होंने दिलेरी दिखाते हुए अग्निवीरों के समर्थन में अपनी पेंशन तक छोड़ने का ऐलान कर दिया है. उन्होंने पिछले दिन ट्वीट कर कहा कि अल्पावधि की सेवा करनेवाले अग्निवीर पेंशन के हकदार नही हैं तो, जनप्रतिनिधियों को यह सहूलियत क्यूं? वरुण गांधी ने कहा कि अगर कम समय की सेवा करने वाले राष्ट्ररक्षकों को पेंशन का अधिकार नहीं है, तो मैं भी पेंशन छोड़ने के लिए तैयार हूं. वहीं झारखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व जमशेदपुर के पूर्व सांसद डॉ. अजय कुमार ने सैनिकों की पेंशन का समर्थन करते हुए अपनी पेंशन छोड़ने की पेशकश की है. उन्होंने सभी पूर्व विधायकों और पूर्व सांसदों को एक साथ पेंशन छोड़ने की अपील की है. वैसे इस मामले में सभी माननीय कुछ भी कहने से परहेज कर रहे हैं, बल्कि अग्नवीर योजना के बारे में कसीदे गढ़ रहे हैं. इनमें रूलिंग पार्टी (भाजपा) के सांसदों और मंत्रियों की कठदलीली जारी है. काश माननीयों की ओर से एक साथ समग्र स्वर फूटता, और वे ये कहते कि जवानों को पक्की नौकरी दो, भले हमारी पेंशन बंद कर दो, क्योंकि ये देश की सुरक्षा का सवाल है…! लेकिन इसपर गहरी खामोशी है. क्या देश की सुरक्षा का जिम्मा सिर्फ युवाओं के कंधे पर है? क्या आज यह कोई मान सकता है कि माननीय बनने के बाद कोई एमपी-एमएलए गरीब रह जाता है?
क्या है पेंशन के नियम
लोकसभा की आधिकारिक वेबसाइट में संसद सदस्य वेतन, भत्ता और पेंशन अधिनियम 1954 की धारा 8क में बताया गया है कि ऐसे हर व्यक्ति को पेंशन का भुगतान किया जाएगा, जिसमें किसी भी अवधि तक अंतरिम संसद के सदस्य या संसद के किसी भी सदन के सदस्य के रूप में सेवा की हो, उसे प्रतिमाह पेंशन दी जाएगी. यानी कि जैसे कोई व्यक्ति अगर कुछ दिन के लिए भी सांसद बनता है तो उसे जीवन भर पेंशन मिलेगी. अगर कोई सांसद अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए तो भी उसे पेंशन का भुगतान किया जाता है. कोई नेताजी पांच बार सांसद बनते हैं, तो उनकी पेंशन में भी उसी हिसाब से बढ़ोतरी हो जाएगी.
माननीयों की पेंशन में प्रतिवर्ष अरबों खर्च होते हैं
साल 2017 में लोक प्रहरी नामक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पूर्व सांसदों को मिलने वाली पेंशन और अन्य सुविधाओं को रद्द करने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि सांसद के पद से हटने के बाद भी जनता के पैसे से पेंशन लेना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) और अनुच्छेद 106 का उल्लंघन है। संसद को ये अधिकार नहीं है कि वो बिना कानून बनाए सांसदों को पेंशन सुविधाएं दें। याचिकाकर्ता ने ये भी कहा था कि 82 प्रतिशत सांसद करोड़पति हैं और गरीब करदाताओं के ऊपर सांसदों और उनके परिवार को पेंशन राशि देने का बोझ नहीं डाला जा सकता है।’ हालांकि तत्कालीन जज जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने इस मामले को कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर का बताते हुए यह याचिका खारिज कर दी थी। 1954 में लागू किये गये सांसदों के वेतन, भत्ता एवं पेंशन अधिनियम में अब तक 29 बार मनमाने संशोधन किये जा चुके हैं। मनमाना इसलिये कि जैसा सांसद चाहते हैं स्वयं वैसा ही निर्णय ले लेते हैं। दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहां सांसद अपने वेतन, भत्ते, पेंशन व सुविधाओं का स्वयं निर्णय ले लेते हों। पेंशन लेनेवालों में देश के करोड़पति, अरबपति भी पीछे नहीं हैं।
ठुकराइये पेंशन…दिखाइये देशभक्ति…!
आखिर क्रांतिवीर युवाओं का यह सवाल कैसे गलत है कि हमें ठेके पर नौकरी और आप एक हफ्ते के लिए भी सांसद-विधायक हुए तो, आजीवन पेंशन, ये कहां का न्याय है? विधायक-सांसद सदनों में मिनटों में अपनी सैलरी और सुविधाओं के बिल पास करा लेते हैं, इसपर कभी किसी ने विरोध किया? क्या ऐसा करने से पूर्व क्या हमारे जनप्रतिनिधि जनमत संग्रह कराते हैं? लोकतंत्र अगर लोकलाज से चलता है, तो माननीयों को लाज क्यों नहीं आती? ठुकराइये पेंशन…दिखाइये देशभक्ति…! प्रधानमंत्री ने इस मामले में फरमाया कि कुछ फैसले और सुधार शुरुआत में भले खराब लगते हैं, लेकिन लंबे वक्त में उनसे देश को फायदा होता है. सवाल उठता है कि देश में सुधार का ठेका सिर्फ युवाओं के मत्थे थोपा जाएगा? फिर देश में माननीयों का भारी-भरकम कुनबा किस मर्ज की दवा है. इस तरह के सुधार की पहल पहले सदनों से शुरुआत क्यों नहीं हो? पर उपदेश कुशल बहुतेरे… पहले खुद पर लागू करें. राष्ट्र रक्षा के लिए पैसा बचाने के लिए आपकी कोई जिम्मेवारी नहीं बनती? खुद में परिवर्तन लाने की ललक क्यों नहीं? हमारे रहनुमा चाहें तो इस मामले में एक अनूठी मिसाल पेश कर सकते हैं. समय रहते अगर ऐसा नहीं किया गया तो, माननीयों की पेंशन पर रोक लगाने की मांग और तेज हो सकती है. मान लीजिए कि इसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन छिड़ जाए…और मजबूरन मीडिया को भी माननीयों से इस बाबत सवाल पूछना पड़ जाए, तब वे क्या करेंगे? देश के सामने ये सबसे बड़ा सवाल है. देखना है इस सवाल का जवाब कब और कौन देगा?