नारायण विश्वकर्मा
महाराष्ट्र में शिवसेना का तीर अपनी कमान से निकल चुका है. इससे पार्टी के लोग बुरी तरह से घायल हुए हैं. महाराष्ट्र में भाजपा के ऑपरेशन लोटस के आगे विरोधियों ने घुटने टेक दिए. दूसरी तरफ झारखंड में झामुमो अपने तीर-कमान को मजबूती से संभाले हुए है. हालांकि पार्टी भले बाहर से एक दिखे, पर अंदर ही अंदर कई विधायक उबल रहे हैं. झामुमो के युवराज जब से दिल्ली से लौटे हैं, सरकार थोड़े बदले-बदले से नजर आ रहे हैं. झारखंड की राजनीति में झामुमो का तीर-धनुष कब किस पर चलेगा और कौन घायल होगा, यह तो राष्ट्रपति चुनाव के बाद ही पता चलेगा. दरअसल, झामुमो के भाजपा कनेक्शन से कांग्रेसियों की थोड़ी परेशानी बढ़ी है. इसके कारण कांग्रेसी खेमे में इस वक्त जरूर हलचल मची हुई है. सूत्रों की मानें तो झामुमो को कांग्रेस से मुक्त करने की पटकथा लिखी जा चुकी है. केंद्रीय स्तर पर भाजपा के अंदरखाने में मंथन का दौर जारी है. वैसे यहां याद दिला दूं कि झारखंड में भाजपा पूर्व में झामुमो के साथ सरकार बना चुकी है. भले राजनीतिक तौर पर इसे बेमेल गठबंधन कहा गया था. पर एक बार फिर झारखंड की राजनीति इतिहास दोहराने के मुहाने पर खड़ा है.
झामुमो के अंदर सबकुछ ठीकठाक नहीं
दरअसल, झामुमो के अंदर भी सबकुछ ठीकठाक नहीं है. झामुमो के विघ्नसंतोषी विधायकों ने सरकार गिराने के मकसद से दिल्ली से भाया देहरादून तक का सफर तय कर चुके हैं. ये बात बिल्कुल सही है कि गुरु दिशोम शिबू सोरेन का परिवार आंतरिक कलह से अभी तक उबर नहीं पाया है. शिबू सोरेन की बड़ी बहू और जामा की विधायक सीता सोरेन लगातार सरकार की कमियों को उजागर करती रहती हैं. बाकी झामुमो का कोई भी विधायक यह हिमाकत नहीं करता. गुरु जी के छोटे बेटे और दुमका के विधायक बसंत सोरेन के साथ झामुमो के विधायकों का एक दल दिल्ली जाकर भाजपा के रणनीतिकारों से मिला था. लेकिन वहां बात नहीं बनी, क्योंकि झामुमो के एक दर्जन विधायकों के पार्टी छोड़ने से सरकार का गिरना मुश्किल था. इसके लिए झामुमो के 30 में से 22 विधायकों को तोड़ने की चुनौती थी. इसलिए सरकार गिराने और बनाने के खेल का चैप्टर क्लोज हो गया. लेकिन भाजपा के रणनीतिकारों की ओर से प्रयास जरूर हुआ था, क्योंकि झामुमो में अंदरूनी कलह की जानकारी दिल्ली को है. हालांकि पार्टी में अंदरुनी कलह अब भी जारी है. पार्टी में कुछ सीनियर तो कुछ जूनियर विधायक अपनी उपेक्षाओं से त्रस्त हैं. बताया गया कि कई विधायक सीएम से अपनी शिकायत करना चाहते हैं तो, सीएम के प्रेस सलाहकार अभिषेक प्रसाद उन्हें टरका देते हैं. इसके कारण कई कार्यकर्ता और विधायकों में उनके खिलाफ गहरा आक्रोश है. कमोबेश यही शिकायत कांग्रेसियों में भी है.
झामुमो द्रौपदी मुर्मू का विरोध करने की स्थिति में नहीं
सूत्र बताते हैं कि मौजूदा राजनीतिक हालात में झामुमो यूपीए फोल्डर की पार्टी है, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में वह एनडीए की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का मन बना चुका है. राज्य में झामुमो-कांग्रेस और राजद गठबंधन की मौजूदा सरकार पिछले ढाई साल से चल रही है, लेकिन इस दौरान कई बार आपसी मतभेद उभर कर सामने आये हैं. सीएम हेमंत सोरेन और गृहमंत्री अमित शाह एक रणनीति के तहत राष्ट्रपति चुनाव में अपनी पार्टी का स्टैंड तय करने के लिए दोनों मिले. कहा जा रहा है कि उन दोनों के बीच खिचड़ी पक चुकी है. राष्ट्रपति चुनाव के बाद इसमें छौंक लगने की पूरी संभावना है. झामुमो की ओर से अभी पत्ते नहीं खोले हैं गए हैं. इसके कारण कांग्रेस में बेचैनी है. द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में फैसला लेने की सुगबुगाहट से कांग्रेस हलकान है. द्रौपदी मुर्मू आदिवासी महिला हैं. उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने एक तरह से झामुमो के लिए विरोध की सारी गुंजाइश, एक झटके में खत्म कर दी है. अगर झामुमो उनके खिलाफ मतदान करता है, तो उसके आदिवासी विरोधी होने का ठप्पा लग सकता है.
सीएम का भाजपा के प्रति नरम रुख अपनाने के मायने…!
भाजपा की ठोस रणनीति के कारण झारखंड में झामुमो-कांग्रेस को पसोपेश में डाल दिया है. कांग्रेस के पास तो कोई विकल्प ही नहीं है. पर झामुमो के पास विकल्प के मार्ग खुले हुए हैं. शायद यही कारण है कि भाजपा के प्रति सीएम के रुख में बदलाव साफ दिख रहा है. सीएम हेमंत सोरेन ने पिछले कई सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान अपने भाषणों में केंद्र सरकार या भाजपा के खिलाफ नरमी दिखायी है. ईडी की कार्रवाई के बाद कुछ दिन पूर्व तक हेमंत सोरेन सीधे केंद्र पर हमलावर थे. हालांकि वे यह भी जानते हैं कि ईडी की ओर से अगर निष्पक्ष कार्रवाई हुई, तो पूर्व सीएम रघुवर दास घिरते नजर आएंगे. वैसे इन दिनों रघुवर दास भी अब सरकार के खिलाफ बोलने से परहेज कर रहे हैं. इधर प्रधानमंत्री 12 जुलाई को देवघर आनेवाले हैं. इस दौरान पीएम 12 बड़ी योजनाओं का उदघाटन और शिलान्यास करेंगे. इस मौके पर सीएम उनके साथ मंच साझा कर सकते हैं.
भाजपा-झामुमो में हो सकती है सत्ता की भागीदारी…!
सूत्र बताते हैं कि झामुमो के द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट करने से कांग्रेस से खटपट होना तय है. राज्यसभा चुनाव के दौरान अचानक महुआ माझी को सामने लाकर हेमंत सोरेन ने कांग्रेस को जोर का झटका दिया था. राष्ट्रपति चुनाव के मामले में झामुमो के रुख से तो, कांग्रेस पूर्वाग्रह से ग्रसित हो गई है. उन्हें पता है कि झामुमो का क्या स्टैंड होगा. ऐसी स्थिति में मजबूरन कांग्रेस को सरकार से समर्थन वापस लेना पड़ सकता है. झारखंड में भाजपा हर हाल में सत्ता का साथी बनना चाहेगी. प्लॉट तैयार हो चुका है. इसलिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व एक रणनीति के तहत झामुमो के साथ हेमंत सरकार में शामिल होने का ताना-बाना बुनने लगा है. भाजपा सरकार के कार्यकाल के शेष बचे ढाई साल के लिए एक अनूठा प्रयोग कर सकती है. संभावना है कि हेमंत सरकार में भाजपा की ओर से कोई उप मुख्यमंत्री बनाया जाए. याद रहे भाजपा की अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली सरकार में हेमंत सोरेन उप मुख्यमंत्री बने थे. इस बार भाजपा की ओर से कोई आदिवासी विधायक ही उपमुख्यमंत्री बन सकता है. इनमें बाबूलाल मरांडी का नाम प्रमुख रूप से लिया जा रहा है. अगर उन्होंने इंकार किया तो, नीलकंठ सिंह मुंडा का नाम आगे किया जा सकता है. बहरहाल, झारखंड गठन के बाद से ही झारखंड को राजनीति का प्रयोगशाला कहा जाता रहा है. झारखंड एक बार फिर उसी राह की ओर बढ़ चला है.