रांची – दुमका और बेरमो उपचुनाव में बीजेपी को मिली करारी हार के बाद बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी से किनारा कर लिया है. दुमका और बेरमो में मरांडी के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी को दोनों ही सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. पार्टी को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सामने बाबूलाल मरांडी का चेहरा प्रोजेक्ट कर उसे आदिवासियों का वोट हासिल करने में कामयाबी मिलेगी, मगर जनता ने हेमंत सोरेन सरकार के कामकाज पर भरोसा जताते हुए बीजेपी को दोनों ही सीटों से महरूम कर दिया. यही वजह है कि अब बीजेपी ने मरांडी के चेहरे से भी किनारा करना शुरू कर दिया है. बाबूलाल मरांडी को आदिवासियों का नेता साबित करने की बीजेपी की कोशिश के धाराशायी होते ही बीजेपी ने पार्टी के अंदर ही नए आदिवासी चेहरे की तलाश शुरू कर दी है, जिसे आगे भविष्य में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ प्रोजेक्ट किया जा सके. इसकी एक बानगी बुधवार को विधानसभा में देखने को मिली, जहां सरना धर्मकोड को लेकर बुलाये गए विशेष सत्र में बीजेपी की ओर से बाबूलाल मरांडी को बोलने का अवसर नहीं दिया गया. बाबूलाल मरांडी चाहते थे कि वे भी सरना धर्म कोड पर अपनी बात सदन में रखे, मगर बीजेपी की ओर से बोलने के लिए जो चार नाम दिए गए थे, उसमे बाबूलाल मरांडी का नाम शामिल नहीं था. सवाल उठ रहा है कि बीजेपी विधायक दल का नेता होने के बावजूद बीजेपी ने आखिर क्यों बाबूलाल मरांडी को बोलने का मौका नहीं दिया. जबकि बीजेपी की ओर से सदन में सरना धर्म कोड को लेकर नीलकंठ सिंह मुंडा ने पार्टी का पक्ष रखा.