रामगढ़: कृषि विज्ञान केन्द्र , रामगढ़ के द्वारा मंगलवार एवं बुधवार को डी.बी.टी. बायोटेक – किसान परियोजना के अंतर्गत मांडू प्रखण्ड के टकहा एवं जामुनदाहा गाँव में एक दिवसीय प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया गया ।
इस आयोजन में किसानों के बीच भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद , पटना से आये कृषि वैज्ञानिक डॉ पवन जीत , डॉ . एन . राजू सिंह एवं डॉ प्रेम कुमार सुन्दरम् , ने पूर्वी पहाड़ी और पठारी कृषि – जलवायु क्षेत्र में फसलों को पर्याप्त पानी की आपूर्ति के लिए वर्षा जल प्रबंधन तकनीक के बारे में विस्तृत रूप से समझाते हुए कहा कि पानी का उपयोग घर , कृषि और व्यापार के क्षेत्र में अत्यधिक उपयोग किया जाता है । अब ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में भी अत्यधिक बोरवेल स्थापित हो जाने पर भी मिट्टी के अंदर जल स्तर कम होने लगा है और कुछ जगहों पर तो कई बोरवेल बंद भी हो चुके हैं । ऐसे में पानी को संरक्षित यानी कि जल संरक्षण के विषय में हमें जल्द से जल्द सोचना होगा क्योंकि जल ही जीवन है । आज ना सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में बोरवेल बल्कि शहरी क्षेत्रों में कई बड़े कल कारखानों में पानी का उपयोग होने के कारण भी पानी की किल्लत होने लगी है । प्रतिवर्ष थोड़ी बहुत वर्षा हर क्षेत्र में होती है ऐसे में कुछ चीजों का ध्यान और प्रक्रियाओं के माध्यम से हम वर्षा के जल को संरक्षित करके रख सकते हैं ।
पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षा जल का उपयोग कृषि के लिए समुचित रूप नहीं हो पाता है और कृषि में आवश्यक सिंचाई के लिए पर्याप्त जल भू – जल के द्वारा नहीं हो पाता है । सिंचाई के लिए वर्षा जल का संरक्षण करना अति आवश्यक है । बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए डोभा या तालाबों और अन्य छोटे पानी के स्रोतों में जमा कर सकते हैं जिसके द्वारा कृषि के लिए जल की उपलब्धता को बहुत हद तक बढ़या जा सकता है और इस तरीके से जमा किए हुए जल को ज्यादातर कृषि में लगाया जा सकता है । जल के संरक्षण के लिए डोभा , टपक सिंचाई मुख्य तकनीक है । केन्द्र के प्रभारी डॉ . दुष्यन्त कुमार राघव ने किसानों से कहा कि वर्षा जल संचयन या रेन वाटर हारवेस्टिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिस में हम वर्षा के पानी को जरूरत की चीजों में उपयोग कर सकते हैं । वर्षा के पानी को एक निर्धारित किए हुए स्थान पर जमा करके हम वर्षा जल संचयन कर सकते हैं और इसका उपयोग कृषि में सिंचाई के लिए कर सकते हैं ।