देवघर: वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदांत दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें 2 मिनट का समय दिया गया था लेकिन उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत “मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों” के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।
स्थानीय गुरुकुल कोचिंग सेंटर परिसर में विवेकानंद शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान तथा गुरुकुल के युग्म बैनर तले साप्ताहिक युवा दिवस सह विवेकानंद जयंती के अवसर पर ‘राष्ट्र निर्माण में स्वामी विवेकानंद की देन’ पर एक संगोष्ठी रखी गई थी।
विवेकानंद राष्ट्रीय साहित्य सम्मान प्राप्त डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव ने कहा कि स्वामी विवेकानंद एक व्यक्तित्व नहीं एक बुनियाद है, भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के युवाओं के लिए उनके विचार प्रासंगिक एवं अनुकरणीय हैं। उनके विचार आज के विखंडित एवं पथभ्रष्ट समाज को जोड़ने के लिए रामबाण औषधि हैं।
ई. रवि शंकर गुरुकुल के निदेशक ई. रवि शंकर ने कहा-स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को चरित्र निर्माण की ओर प्रेरित करते हुए कहा है कि प्रत्येक मनुष्य जन्म से ही देवीय गुणों से परिपूर्ण होता है ये गुण सत्य, निष्ठां, समर्पण, साहस एवं विश्वास से जाग्रत होते हैं इन को अपने आचरण में लाने से व्यक्ति महान एवं चरित्रवान बन सकता है। मनुष्य को महान बनने के लिए संदेह, ईर्ष्या, द्वेष छोड़ना होगा।
निवास कुमार देव परम विद्या मंदिर, जसीडीह के प्राचार्य निवास कुमार देव ने कहा कि स्त्री विमर्श पर चर्चा करते हुए स्वामीजी ने कहा था की आत्मा का कोई लिंग नहीं होता है अतः स्त्री एवं पुरुष का विवेध प्राकृतिक नहीं है ये सिर्फ शरीर का विबेध है जो ईश्वर द्वारा मान्य नहीं है। अतः समाज में स्त्रीयों को वही सम्मान एवं स्थान मिलना चाहिए जो पुरुष का है। हमें स्त्री एवं पुरुष के भेद को त्यागना होगा और प्रत्येक को मानव रूप में एकात्म दृष्टि से देखना होगा। स्वामीजी के अनुसार जब तक विश्व में महिलाओं की बेहतरी के लिए काम नहीं होगा तब तक विश्व का कल्याण संभव नहीं है।
श्रीकांत जयसवाल आर. मित्रा प्लस टू स्कूल के सहायक शिक्षक श्रीकांत जयसवाल ने कहा कि राष्ट्रीय एकता के बारें में स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि भले ही भारत में भाषाई, जातिवाद ऐतिहासिक एवं क्षेत्रीय विवधताएँ हैं लेकिन इन विविधताओं को भारत की सांस्कृतिक यकता एक सूत्र में पिरोये हुए है। उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों में जाकर पाने भाषणों में धार्मिक चेतना को जगाने एवं दलित शोषित व महिलाओं को शिक्षित कर उन्हें राष्ट्र निर्माण में योगदान देने की बात कही है। स्वामी विवेकानन्द एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे और उन्हें अपनी राष्ट्रीयता पर गर्व भी था।
धीरेंद्र भारती राजकीयकृत बिहारी लाल सर्राफ प्लस टू विद्यालय, रिखिया के शिक्षक धीरेंद्र भारती ने कहा कि स्वामीजी ने शिक्षा को समाज की रीढ़ माना है। उनके अनुसार शिक्षा मनुष्यता की सम्पूर्णता का प्रदर्शन है। स्वामजी ने कहा है कि जो शिक्षा मनुष्य में आत्मनिर्भरता एवं आत्मविश्वास न जगाये उस शिक्षा का कोई औचित्य नहीं है। शिक्षा से व्यक्तित्व का निर्माण, जीवन जीने की दिशा एवं चरित्र निर्माण होना चाहिए।
कौशल किशोर राय उत्क्रमित उच्च विद्यालय, पुनासी के शिक्षक कौशल किशोर राय ने कहा कि स्वामीजी के अनुसार युवा किसी भी देश की सबसे बहुमूल्य संपत्ति होता हैं। उन्होंने युवाओं को अनंत ऊर्जा का स्त्रोत बताया है। उन्होंने कहा है कि अगर युवाओं की उन्नत ऊर्जा को सही दिशा प्रदान कर दी जाये तो राष्ट्र के विकास को नए आयाम मिल सकते हैं। स्वामी जी कहा करते थे, ‘जिसके जीवन में ध्येय नहीं है, जिसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है, उसका जीवन व्यर्थ है’।
अनंत कुमार प्लस टू स्कूल, तिलकपुर, सोनारायठाढ़ी के शिक्षक अनन्त कुमार ने कहा- स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की परवाह किए बिना, स्वयं के भोजन की परवाह किए बिना गुरु सेवा में सतत हाजिर रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यंत रुग्ण हो गया था। कैंसर के कारण गले में से थूंक, रक्त, कफ आदि निकलता था। इन सबकी सफाई वे खूब ध्यान से करते थे।
राकेश कुमार राय संकुलसेवी साधन, करौं राकेश कुमार राय ने कहा कि वर्तमान पीढ़ी परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। जीवनशैली, नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों में बदलाव आ रहा है। आज की युवा पीढ़ी विकास एवं आर्थिक उन्नयन के बोझ तले इतनी अधिक दब गई है कि वह अपने पारम्परिक आधारभूत उच्च आदर्शों से समझौता तक करने में हिचक नहीं रही है। आज के युवाओं के पास उत्तराधिकार के रूप में स्वामी विवेकानंद के विचारों की धरोहर है जिसके अनुपालन से वह भारत में ही नहीं वरन विश्व में सफलता के नए आयाम स्थापित कर सकते हैं।
इनके अलावे आर.एल. सर्राफ स्कूल के सहायक शिक्षक डॉ. विजय शंकर, उत्क्रमित उच्च विद्यालय, बांक, जसीडीह के सहायक शिक्षक धर्मेंद्र कुमार, उच्च विद्यालय, घोरमारा के सहायक शिक्षक प्रणव कुमार, रेड रोज स्कूल के शिक्षक अनिल कुमार पाण्डेय, आशुतोष बालिका उच्च विद्यालय, रोहिणी के प्राचार्य मणीन्द्र कुमार सिंह, डिवाइन पब्लिक स्कूल के प्राचार्य डॉ. धर्म पद बल, दीनबंधु उच्च विद्यालय के प्रधानाचार्य काजल कांति सिकदार व अन्य ने भी विषय वस्तु पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम के अंत में सभी को सम्मानित किया गया।