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Monday, December 23, 2024
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भयानक काली अँधेरी रात – सुवीर कुमार परदेशी

पहले तो कभी कभी अँधेरी रात होती थी , जिसमे कुछ उम्मीद की रोशनी होती थी ,
अब भयानक काली अँधेरी रात है ,
नाही रोशनी है नहीं उम्मीद की किरण है ,
अपने हिम्मत और बलबूते यहाँ तक अँधेरे में अकेले आ गया हु ,
कुछ लोग मेरे साथ भी बढ़ चले है ,
मगर उनके पास चाईंनिज टोर्च है ,
पता नहीं कब मुझे अँधेरे का लाभ उठाकर अपनी टोर्च की रौशनी में मुझे छोड़ जाएं ,
कहना मुश्किल है ,
जमाना ख़राब है किन्तु हम तो अभी भी वही है , जो अँधेरे में भी लोगों को रोशनी दिखाते है ,
पता नहीं वही रोशनी भगवान मुझे कब दिखाएंगे जिसके सहारे ,
घनघोर काली अँधेरी रात से निकल पाऊं,

लेखक – सुवीर कुमार परदेशी पटना , बिहार

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