नारायण विश्वकर्मा
आखिरकार महीने भर के इंतजार के बाद राज्य के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी डॉ नितिन मदन कुलकर्णी को फिर से राज्यपाल रमेश बैस का प्रधान सचिव नियुक्त कर दिया गया है. कार्मिक, प्रशासनिक, सुधार तथा राजभाषा विभाग ने बुधवार देर शाम इस बाबत अधिसूचना जारी कर दी है. वहीं, पदस्थापन के लिए प्रतीक्षारत ए. मुथुकुमार को अगले आदेश तक दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडलीय आयुक्त नियुक्त किया गया है. पिछले 9 जुलाई को गवर्नर के प्रधान सचिव नितिन मदन कुलकर्णी को हटाकर उनकी जगह राहुल शर्मा को राज्यपाल का प्रधान सचिव बनाया गया था और नितिन मदन कुलकर्णी राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष के पद पर कार्यरत थे.
राजभवन ने जतायी थी नाराजगी
बता दें कि राज्यपाल के प्रधान सचिव नितिन मदन कुलकर्णी के तबादले से राजभवन नाराज चल रहा था. उनके तबादले की खबर पर राजभवन ने प्रभारी अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह से जवाब-तलब किया था. प्रदेश के राज्यपाल रमेश बैस बगैर उनकी सलाह के प्रधान सचिव को बदले जाने पर हेमंत सरकार की कार्यशैली पर बेहद खफा थे. राजभवन ने जानना चाहा था कि आखिर उन्हें बताए बिना राजभवन से जुड़े अधिकारी को एक झटके में कैसे हटा दिया गया? हालांकि इसकी संभावना थी कि राजभवन से उन्हें नहीं हटाया जाएगा. वे लगातार राजभवन के कामकाज को देख रहे थे. वहीं आयुक्त कार्यालय एक-दो घंटे के लिए आ रहे थे पर कोर्ट नहीं कर रहे थे. इस बीच प्रतिदिन आदिवासी रैयत अपनी जमीन के केस के सिलसिले में आयुक्त कार्यालय का चक्कर लगाकर घर चले जाते थे. उन्हें कहा जाता था कि सर अभी कोर्ट नहीं कर रहे हैं. इस बीच एक माह के भीतर और 530 केस लंबित हो गए. बताया गया कि आयुक्त अगर नियमित रूप से कोर्ट करते तो कम से कम 30 से अधिक केसों का निष्पादन जरूर किया जा सकता था. लेकिन अब ये काम नए आयुक्त ए. मुथुकुमार के जिम्मे है.
आयुक्त कोर्ट ने डेढ़ साल में रिकार्ड बनाया
बता दें कि जनवरी 2021 में नितिन मदन कुलकर्णी स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव के पद से हटाकर दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के पद पर पदस्थापित किया गया था. उस समच चर्चा थी कि सरकार ने कुलकर्णी को आयुक्त के पद पर भेजकर उन्हें संटिंग में डाल दिया है. लेकिन करीब डेढ़ साल के कार्यकाल में आदिवासी समाज के साथ न्याय करनेवाले पहले आयुक्त के रूप में नितिन मदन कुलकर्णी का नाम झारखंड के इतिहास में दर्ज हो गया. वहीं आज का आयुक्त कार्यालय बाहर से ही नहीं, अंदर भी बदला हुआ नजर आता है. आदिवासियों की हड़पी गई जमीन को वापस दिलाने में और उसके साथ न्याय करने में आयुक्त न्यायालय ने महज डेढ़ साल में ऐतिहासिक रिकार्ड बनाया.
आदिवासी रैयत अब अपने केस को लेकर चिंतित
यहां यह बताते चलें कि शिड्यूल एरिया रेगुलेशन 1969 के अधीन दायर वादों के पुनरीक्षण प्राधिकार आयुक्त होते हैं. इसके तहत आदिवासी रैयतों की जमीन से संबंधित मामलों में सीएनटी एक्ट-1908 के प्रावधानों का उल्लंघन कर जमीनों के लेन-देन के मामलों में उपायुक्त न्यायालय के आदेश को चुनौती दी जाती है. इसमें पीड़ित आदिवासी रैयत कई दशकों से केस के चक्कर में भाग-दौड़ करते रहते हैं. इसके बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिलता है. आयुक्त न्यायालय में 1980, 1990, 2000 और 2010 के दशक से लंबित करीब 900 वादों में से श्री कुलकर्णी ने अबतक 424 से अधिक वादों का निष्पादन कर आदिवासी रैयतों का उद्धार किया था. यह रिकार्ड उनके नाम दर्ज हो गया है. अब देखना है कि नए आयुक्त इस रिकार्ड को तोड़ पाते हैं या नहीं. डेढ़ साल में आयुक्त कोर्ट में सारे वादों का निष्पादन आदिवासी रैयतों के पक्ष में किया गया है. आदिवासी रैयतों से हजारों परिवाद पत्र प्राप्त हुए. इस पर तेज गति से काम हुआ और आदिवासी रैयतों को इंसाफ मिला.
कुलकर्णी जैसे अफसरों की कमी खलेगी
बहरहाल, श्री कुलकर्णी ने अपने छोटे से कार्यकाल में रांची जिले के निवर्तमान डीसी के कोर्ट से जुड़ी कई खामियों को उजागर किया और उसपर कार्रवाई के लिए सरकार को भी लिखा, पर सरकार ने अबतक इन मामलों में गंभीरता नहीं दिखाई है, न डीसी का कुछ बिगड़ा. उन्होंने हेहल अंचल के बजरा मौजा के भूमि नामांतरण और बुंडू अंचल के मौजा कोड़दा के गलत जमीन हस्तातंरण की जांच कर सरकार को प्रतिवेदन भेजा था. यह मामला काफी चर्चित हुआ. सरकार ने इसपर कोई ठोस कार्रवाई तो नहीं की. आदिवासी रैयतों के अलावा कई अधिवक्ताओं का कहना है कि नए आयुक्त के बारे में अभी तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता पर, नितिन मदन कुलकर्णी जैसे अफसरों यहां अभी जरूरत थी. आदिवासी रैयतों को वर्षों की जद्दोजहद के बाद आयुक्त कोर्ट से न्याय मिला था. पता नहीं शेष मुकदमों की सुनवाई कब से शुरू होगी और कितने दिन में उनके हक में फैसला होगा, यह कहना अभी मुश्किल है.