सरकार की योजनाएं ग्रामीण महिलाओं को न केवल आत्मनिर्भर बना रही हैं बल्कि समाज में उन्हें सम्मान भी मिल रहा है। यशोदा देवी की कहानी और भी महिलाओं के लिए उदाहरण बन उभरती है। खूंटी जिले के मुरहू प्रखण्ड की यशोदा देवी न केवल गहने बनाने में दक्ष हैं, बल्कि एक सफल आभूषण व्यवसायी भी हैं। इन्होंने करीब दर्जन भर महिलाओं को रोजगार से जोड़ा है। यशोदा देवी पूर्व से ही अपने ससुराल के आभूषण व्यवसाय से जुड़ गई। इस व्यवसाय में उनकी आमदनी का अधिकांश हिस्सा महाजन का ब्याज चुकाने में चला जाता था। यशोदा देवी के जीवन में बदलाव की तस्वीर बनी जब उन्हें लक्ष्मी महिला मंडल से जुड़ने का अवसर मिला और सखी मण्डल से मिलने वाले ऋण सुविधा की जानकारी मिली, मानों उनके सपनों में जैसे पंख लग गए क्योंकि उन्हें अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए पैसों की जरूरत थी। उन्होंने समूह से छोटे-बड़े लोन के रूप में अब तक 2 लाख रुपये लिये हैं और अपने व्यवसाय को बढ़ाया है। पिछले कुछ वर्षों में अपनी लगन और मेहनत की बदौलत उनका व्यापार काफी बढ़ा है और उन्होंने 1 लाख रुपये चुका भी दिए हैं। उन्होंने राज्य में आयोजित सरस मेले के अलावा कई राष्ट्रीय स्तर के मेलों में जिले का परचम लहराया है। यशोदा देवी बताती हैं कि “जब मैं सखी मंडल की सदस्य नहीं थी तब दुकान के लिए सामान इकट्ठा कर पाना बहुत कठिन था। महाजन के मनमानी ब्याज और सामानों के महंगे दाम के कारण बहुत कम प्रकार के आभूषण तैयार कर पाती थी। सखी मंडल से जुड़ने के बाद मेरे समूह का कैश क्रेडिट लिंक (सी.सी.एल) हुआ, जिससे मैं कम ब्याज दर पर ज्यादा ऋण प्राप्त करने लगी और अपने काम को आगे बढ़ा पायी। समूह में शामिल होने से पहले यशोदा देवी सिर्फ एक साप्ताहिक बाजार का सामान बना पाती थी लेकिन वर्तमान में वे कुल 5 साप्ताहिक बाजार (जलटंडा, चाकी, खूंटी, तपकरा व मुरहू) में अपनी दुकान लगाती हैं। आज की तारीख में उनके पास कम से कम 25 लाख रुपए का तैयार सामान है। इसके अलावा उन्होंने लगभग 12 महिलाओं को प्रशिक्षित किया है। साथ ही उन महिलाओं को कच्चा माल देकर उनसे तरह-तरह के आभूषण बनवाती हैं। इनके मुख्य उत्पादों की सूची में आदिवासी कंगन(खसिया, पछुआ, ककना, ठेला, बागरी आदि), हसली (गले का), गाडली, पैरी(पैर का), बाजूबद(बाजू का) व कान के झुमके विशेष रूप से शुमार हैं। ◆ *उल्लास, पहचान व आजीविका का प्रतीक है ये आभूषण।*================यशोदा देवी मुख्य रूप से पारम्परिक गहनों का निर्माण करती हैं। इन्हें धातु से बने जेवरों (खासतौर पर चांदी) में निपुणता हासिल है। झारखण्ड के आदिवासी समाज में इन गहनों की विशेष महत्ता है। बीते कई सदियों से झारखण्ड राज्य के ग्रामीण प्रवासी अपनी ज़रूरतों के लिए हार्ट, लोकल बाज़ार पर आश्रित हैं। आदिवासी आभूषणों ने हार्ट में अपनी मौजूदगी पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनाए रखी है। आदिवासी समाज में कंगन का खासा महत्व है। कंगन के विभिन्न प्रकार जैसे ठेला व मुंडा आदिवासी समूह की पहचान है। खासिया को उराँव समूह धारण करते हैं, इसी प्रकार पछुवा, ककना व बोंगरी विभिन्न जनजातियों की पारंपरिक पहचान है। चाँदी के इन आभूषणों में हसली, मांडली, पैरी, बाजूबंद, कान की बालियाँ अदि शामिल हैं। यशोदा देवी इन आभूषणों को परंपरागत तरीके से पिघलाती व संजोती हैं। वह इस व्यापार के माध्यम से अपने साथ-साथ कई और परिवारों के जीविकोपार्जन के लिए संकल्पित हैं। यशोदा देवी अपने इस हुनर को आस-पड़ोस के कई परिवारों की साथ साझा कर रही हैं और उन्हें स्वावलंबी बनाने में अपना अतुलनीय योगदान दे रही हैं। इस कला के माध्यम से, यशोदा देवी झारखण्डी आदिवासियों के समृद्ध कला, संस्कृति व परमपराओं को न केवल विलुप्त होने से रोक रही हैं बल्कि उनके व्यापक प्रचार के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान भी दे रही हैं।◆ *यशोदा के सपनों को मिली हौंसलों की उड़ान।*==================साप्ताहिक बाजार के अलावा यशोदा देवी को दूर-दराज के मेलों में स्टॉल लगाने का अवसर भी प्राप्त हुआ है। तीन से चार बार स्टॉल लगाकर उन्हें एक लाख रुपए की आमदनी हो जाती है। इनके सराहनीय कार्य के लिए वर्ष 2017 में आयोजित हरियाणा स्वर्ण जयंती क्राफ्ट मेले में तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा इन्हें नेशनल अवार्ड से भी नवाजा गया है।यशोदा देवी अपना अनुभव साझा करते हुए कहती हैं कि “आज जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो विश्वास नहीं होता मैंने काफी संघर्ष व मेहनत के बाद ये मुकाम हासिल किया है। मुझे मेरे परिवार का भरपूर सहयोग मिला लेकिन मेरी सफलता का सबसे बड़ा श्रेय सरकार की इस योजना को जाता है। अगर मुझे समय-समय पर समूह से ऋण नहीं मिलता तो आज भी मेरा कारोबार एक ही हाट सीमित रहता और शायद महाजन के चंगुल से आजादी भी नहीं मिलती। मुझ जैसी हजारों महिलाओं के जीवन में सरकार की इस पहल से खुशहाली आई है।”यशोदा देवी अपने काम से एक पंथ दो काज को चरितार्थ कर रही है। एक तरफ जहां वे आर्थिक रूप से सशक्त हुई हैं, वहीं दूसरी ओर उनके द्वारा निर्मित आभूषणों का झारखंडी आदिवासियों के समृद्ध कला, संस्कृति व परंपराओं को संजोए रखने में अहम योगदान रहा है। निसंदेह उनके गहने अलग-अलग आदिवासी समूहों की अनोखी पहचान को बखूबी दर्शाते हैं।